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Showing posts from April, 2024

आनंदीबाई जोशी

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  18वीं सदी की ओर देखे तो समाज में महिलाएँ कई कुप्रथाओं की जंजीरों में जकड़ी हुई थी। जिस दौर में सपने देखने पर भी पाबंदी थी, उसी काल में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला जिन्होंने विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल ली और समाज में महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी। डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च, 1865 को रूढ़िवादी मराठी परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में ज़मींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई। वे किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रहे थे।  परिवार की बिगड़ती स्थितियों को देखते हुए उनका विवाह  कच्ची उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर( गोपलराव )से कर दिया गया। हिंदू समाज के रिवाज़ के अनुसार विवाह के बाद वह आनंदी गोपाल जोशी नाम से जानी जाने लगीं। कच्ची उम्र में आनंदी बाई माँ बन गई थी , प्रसूति के दौरान उन्होंने काफी कठिनाइयों का सामना किया था और मानसिक और शारीरिक तौर पर टूट - सी गईं। वह प्रसूति की पूरी क्रिया को सुरक्षित बनाना चाहती थी इसीलिए उन्होंने डॉक्टर

रंगों का त्योहार, होली

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        स्नेह , सद्भाव और बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार ‘होली’  हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। ‘रंगों का त्योहार’ होली भारत में सर्दियों के अंत का प्रतीक है और वसंत ऋतु का स्वागत करता है।  'रंगों का त्योहार'  पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है पहले दिन को होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन जिसे धुलेंडी या धूलिवंदन से जाना जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। होलिका दहन हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन  मनाने के पीछे की प्रथा होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है विष्णु भक्त प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने