रंगों का त्योहार, होली

       

स्नेह , सद्भाव और बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार ‘होली’  हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। ‘रंगों का त्योहार’ होली भारत में सर्दियों के अंत का प्रतीक है और वसंत ऋतु का स्वागत करता है। 

'रंगों का त्योहार'  पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है पहले दिन को होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन जिसे धुलेंडी या धूलिवंदन से जाना जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है।

होलिका दहन

हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

होलिका दहन मनाने के पीछे की प्रथा



होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है विष्णु भक्त प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भाँति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।


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 भारत में 'विविधता में एकता' का अनूठा स्वरूप देखा जाता है। संस्कृति, परंपरा, धर्म और भाषा से अलग होने के बावजूद भी लोग यहां पर एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, साथ ही भाई-चारे की भावना के साथ एकजुट होकर रहते हैं।

भारत के कई प्रांतों में होली का आयोजन अलग-अलग तरह से होता है।

           उत्तर प्रदेश :लट्ठमार होली, बरसाना गांव  & फूलों की होली, वृंदावन

           बिहार: फगुआ                                                          

           पंजाब: होला मोहल्ला

           राजस्थान,गुजरात,हरियाणा: धुलेंडी                      

           केरल: उथिरम

           उत्तराखंडकुमाऊं ,खड़ी होली    

           पश्चिम बंगाल: डोल जात्रा

           ओडिशा: डोल पूर्णिमा                                           

           हिमाचल प्रदेश :सांगला होली    

           तमिलनाडु,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,कर्नाटक : रंगों की होली 

           मणिपुर  योशांग                                                   

            महाराष्ट्र: रंगपंचमी   


धुलेंडी या धूलिवंदन 
धूलिवंदन अर्थात् धूल की वंदना। ऱाख को भी धूल कहते हैं। होलिका की आग से बनी राख को माथे से लगाने की बाद ही होली खेलना प्रारंभ किया जाता है। अतः इस पर्व को धूलिवंदन कहते हैं।
 
बरसाना की लट्ठमार होली


मथुरा और ब्रज की होली दुनियाभर में अपनी अनोखी छटा और परंपराओं के लिए जानी जाती है।यह भारत के सबसे रंगीन पर्व मनाने के अपने अनूठे तरीके लिए भी मशहूर है।इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए बरसाने जाते हैं, जहां गांव की महिलाएं उन पर लाठी बरसाती हैं। होली से कुछ दिन पहले यहां लट्ठमार होली का आयोजन होता है।कहा जाता है कि द़वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्रों के साथ राधा और उनकी सखियों के साथ लट्ठमार होली की परंपरा शुरू की थी। तब से आज तक यह परंपरा यहां निभाई जाती है

 

बरसाना, मथुरा और बनारस की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लेकिन कोलकत्ता 'डोल जात्रा' की होली भी बेहद खास है। क्यों? आइए जानते है।


पश्चिम बंगाल में वसंत उत्सव जिसे 'डोल जात्रा' मनाने की सुंदर परंपरा सदियों से चली रही है यह प्रकृति के प्रति प्रेम के साथ मिलकर मनाए जाने वाले त्योहार है। बसंत उत्सव के दौरान प्रकृति संगीत और नृत्य की ध्वनियों से  महक जाती है। 

यहां लोग इस दिन को पालकी पर कृष्ण और राधा की मूर्तियों को रखकर पूरे शहर में घूमते हैं और इस  दौरान होली खेलते हैं। इस वक्त ज्यादातर लोग अबीर और गुलाल उड़ाते हैं और चारों तरफ घूमते हैं। ये एक नजर से दूसरे नगर तक चलता रहता है। कई जगहों पर आप इसे भव्य रूप में देख सकते हैं।
इस त्योहार  जीवन में सकारात्मकता का संदेश लाता हैं।भारत के पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में मनाया जाने वाला  यह त्योहार जीवन में प्रेम और खुशियों की सौगात लाता है।

 
             वृंदावन या ब्रज की विश्व प्रसिद्ध फूलों की होली में क्यों खास है


ब्रज की लठमार होली, लड्डू होली और फूलों की होली विश्व प्रसिद्ध हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण और राधा रानी और गोपियों संग फूलों वाली होली खेली थी।वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में फूल वाली होली की विशेष धूम देखने के मिलती है।  

फूलों की होली इस मायने में भी खास है क्योंकि यह होली प्रकृति का सम्मान करने का भी संकेत देती है।  रंगों की तुलना में, फूलों का उपयोग स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहतर माना जाता है, क्योंकि फूलों की होली से त्वचा और आंखों को सुरक्षित रहती ही हैं।

पंजाब की होला मोहल्ला में 'होला 'शब्द किसका प्रतीक है और होला मोहल्ला  का आयोजन कहाँ और क्यों किया जाता है?


'होला मोहल्ला सिख संप्रदाय के लिए काफी महत्व रखता है। इसकी शुरुआत सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी। तब से लेकर आज तक इस त्योहार को हर साल मनाया जाता है। इस मौके पर झांकियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही कीर्तन होते हैं और सिख समुदाय के लोग अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। होला' शब्द आपसी स्नेह और सद्भाव का प्रतीक है।

 कुमाऊं (उत्तराखंड) की खड़ी होली को अनूठी होली क्यों कहा जाता है

रंगों के बिना होली का अस्तित्व नहीं है। पर कुमाऊं में खड़ी होली का अपना अलग ही उत्साह है। होल्यारों की टोली इस त्योहार को मनाने के लिए पारंपरिक कपड़े पहनकर खारी गीत गाते हुए समूहों में नृत्य करते हैं।  घरों में रंग घोलकर होली के पकड़ों, टोपी आदि में रंग की बूंदें छिड़क दी जाती हैं।


             भारत ही नहीं, दुनिया के इन 8 देशों में भी मनाई जाती है कुछ अलग तरह की 'होली'

              बहुत जल्द बताएँगे TPV Channel

 

      

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