अधूरी उड़ान
सकारात्मकता सोच के साथ,
सपनों को समेट कर,
बैठे थे वो विमान में,
10 घंटे बाद जिनकी हो जानी थी मंज़िल तय.......
उन्हें नहीं था एहसास,
इस उड़ान से सपनों के पंख बादलों में खो जाएँगे,
क्या कभी सोचा था उन्होंने,
कि यह उड़ान, एक अंतिम सफ़र बन जाएगा,
मंज़िल नहीं, राख बन जाएगी,
वो जो थे ज़िंदगी के मुसाफ़िर,
अब बस खबरों की सुर्खियाँ बनकर रह गए...
खिड़की से झांकती वह माँ, गले मिलता वह बेटा,
अपने पिता के सपना को लेकर जाती वह बिटिया,
अपने हमसफर से मिलने की तमन्ना लिये जाती नवविवाहिता,
किसी के हाथ में था खिलौना, तो किसी के हाथ में आटे के लड्डू,
किसी के हाथों में लगी मेहंदी,
किसी का वो आखिरी खत जो अब बेमंज़िल रह गया,
सभी एक नई शुरुआत की उम्मीद लिए……
विमान ने अपनी उड़ान भरी........
कुछ पल में ही पायलट हो गया मजबूर,
MAY DAY की गूँज
एक तेज चीख,
एक सन्नाटा,
एक पल में रुक गया वक़्त — जैसे साँस थम गई हो…...
अब नहीं रहे वो लड्डू बनाने वाले कोमल हाथ,
न माँ का आंचल, न पिता का साया साथ,
निस्वार्थ सेवा कर लौटे थे जो थके पाँव,
उन्हीं मासूमों को नसीब न हुई एक रोटी का कौड़,
न पूरे होंगे अब अपनों के अधूरे ख्वाब,
सिर्फ़ मलबा बचा है , जिसमें आज भी परिजन ढूंढ रहे अपनों को,
DNA रिपोर्ट आ गई,
पर वो आँखें अब भी तरस रही हैं,
एक आख़िरी बार देखने को उन्हें…
ज़िंदा
हैं
हम,
पर
पूरी
तरह
नहीं,
क्या
हर
खबर
अब
दिल
दहला
देगी
?
क्या अब विमानकर्मी जायेंगे अपने अगले
सफर पर ?
क्या रुक गई
सबकी
ज़िंदगी इस
हादसे
से,
क्या
अब
उस
उड़ान
का
ज़िक्र
भी
कांपती
आवाज़
से
होगा?
कुछ
मुसाफिर कभी
लौट
कर
नहीं
आते…
केवल
उनकी
यादें
रहती
हैं,
गूंजती
है
उनकी
दुआएं
हवा
में
,
मानों
बादलों
की
घटा
भी
कह
रही,
अब
ज़रूरत
है,
हर राख से उठने की, हर शून्य आकाश में आशा खोजने की।।
सुनीता महेन्द्रू
14-06-25
A tribute to all the souls we lost, and the dreams that still fly among the clouds..
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