महाकुंभ मेला , जाने इसका इतिहास और महत्व

1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में कुंभ मेले के दौरान अक्सर दो भाइयों या माता-पिता के बिछड़ने और पुनर्मिलन की कहानियाँ दिखाई जाती थीं, जिससे दर्शकों में कुंभ का अर्थ 'खोना' बन गया।

शायद यही कारण है कि बहुत से लोग कुंभ और कुंभ मेला के बारे में सही जानकारी नहीं रखते। तो चलिएहम कुंभ के अर्थ और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानें।


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पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में आयोजित होता है। कथानक के अनुसार, जब देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया, तो कई दिव्य वस्तुएं प्रकट हुईं, जिनमें से एक था 'अमृत कलश', और यही अमृत इन चार स्थानों पर गिरा था, जिसके बाद कुंभ मेला की परंपरा शुरू हुई।

पौराणिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए। देवताओं के इंद्र पुत्र जयंत ने अमृत से भरा कलश लेकर भागना शुरू किया, और असुर उनके पीछे दौड़ पड़े। अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों के बीच बारह दिन तक युद्ध हुआ, जबकि यह माना जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होता है। इस युद्ध के दौरान जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। ये स्थान थे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।


कुंभ का शाब्दिक अर्थ:

 'कुंभ' संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ "घड़ा" या "सुराही" होता है। यह शब्द अक्सर पानी और अमरता (अमृत) से जुड़ा होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, 'घड़ा' या 'कलश' जो मिट्टी से बना होता है, उसमें पाए जाने वाले तत्व पानी को शुद्ध करते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।

'मेला' शब्द का अर्थ है - किसी एक स्थान पर मिलना या सामूहिक उत्सव में भाग लेना। यह शब्द प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी पाया जाता है। इस प्रकार, 'कुंभ मेला' का अर्थ "अमरत्व का मेला" होता है।

कुंभ के चार प्रकार:

1.     कुंभ: हर 4 साल में एक बार।

2.     अर्धकुंभ: हर 6 साल के अंतराल पर हरिद्वार और प्रयागराज में।

3.     पूर्णकुंभ: हर 12 साल में एक बार।

4.     महाकुंभ: हर 144 साल में एक बार।

महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में पौष पूर्णिमा के दिन शुरू हुआ।



महाकुंभ का वैज्ञानिक आधार: महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार क्यों होता है, इसका वैज्ञानिक कारण भी है। पूर्णकुंभ हर 12 साल में आयोजित होता है, क्योंकि बृहस्पति को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 12 साल लगते हैं। और महाकुंभ का आयोजन तब होता है जब 12 पूर्णकुंभ पूरे हो जाते हैं।

महाकुंभ का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व: महाकुंभ एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें स्नान करने से पाप धुलकर मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। इसके अलावा, यह सामाजिक एकता का प्रतीक भी है, जहां विभिन्न जाति, धर्म और पंथ के लोग एकत्र होते हैं।

महाकुंभ का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यहां के पानी में खनिज तत्व होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

वैज्ञानिक पहलू:

1.     जल की शुद्धता और स्वास्थ्य: कुंभ मेला के आयोजन स्थल पर नदियों का पानी विशेष रूप से शुद्ध और खनिजों से भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है।

2.     आयनोस्फीयर और पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र: इन स्थानों पर आयनोस्फीयर की स्थिति मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

3.     ग्रहों की स्थिति: जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशेष स्थिति में होते हैं, तो यह ऊर्जा मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

4.     प्राकृतिक उपचार और आयुर्वेद: महाकुंभ में स्नान को प्राकृतिक उपचार माना जाता है, और आयुर्वेद के अनुसार नदियों में स्नान से शरीर के दोष संतुलित होते हैं और शारीरिक शुद्धि होती है।

5.    पर्यावरणीय प्रभाव: महाकुंभ के दौरान प्रदूषण कम होने का एक बड़ा कारण यह है कि यह आयोजन प्राकृतिक वातावरण में होता है। इस तरह के आयोजन लोगों को पर्यावरण की शुद्धता के महत्व का अहसास कराते हैं। इसके परिणामस्वरूप, लोग जल और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक जागरूक होते हैं।

महाकुंभ से जुड़े उदाहरण बताते हैं कि यह आयोजन मानसिक शांति और शारीरिक सुधार में भी सहायक होता है, जैसे 2019 के कुंभ मेला में एक साधक ने अनुभव किया कि स्नान और ध्यान करने से उन्हें अपार शांति मिली और आत्मिक शुद्धि का अहसास हुआ।

सुनीता महेन्द्रू


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