आनंदीबाई जोशी

 

18वीं सदी की ओर देखे तो समाज में महिलाएँ कई कुप्रथाओं की जंजीरों में जकड़ी हुई थी। जिस दौर में सपने देखने पर भी पाबंदी थी, उसी काल में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला जिन्होंने विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल ली और समाज में महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी।


डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च, 1865 को रूढ़िवादी मराठी परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में ज़मींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई। वे किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रहे थे। 

परिवार की बिगड़ती स्थितियों को देखते हुए उनका विवाह  कच्ची उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर( गोपलराव )से कर दिया गया। हिंदू समाज के रिवाज़ के अनुसार विवाह के बाद वह आनंदी गोपाल जोशी नाम से जानी जाने लगीं।


कच्ची उम्र में आनंदी बाई माँ बन गई थी, प्रसूति के दौरान उन्होंने काफी कठिनाइयों का सामना किया था और मानसिक और शारीरिक तौर पर टूट-सी गईं। वह प्रसूति की पूरी क्रिया को सुरक्षित बनाना चाहती थी इसीलिए उन्होंने डॉक्टर बनने का संकल्प लिया। जिसमें उनके पति ने उनका साथ दिया। उनके पति गोपाल राव एक प्रगतिशील विचारक थे और महिला-शिक्षा का समर्थन भी करते थे। चूँकि उस समय भारत में ऐलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए पढ़ाई करने के लिए विदेश गई।

 उनके इस फैसले से वह समाज में आलोचनाओं से घिर गई, पर उन्होंने अपने घुटने नहीं टेके और अपने लिए प्रण पर टिकी रही और रूढ़िवादी समाज और उनकी सोच का दृढ़ता से सामना किया।


सन 1883 में आनंदीबाई ने 19 वर्ष की उम्र में चिकित्सा-प्रशिक्षण शुरु किया। अमरीका में ठंडे मौसम और अपरिचित आहार के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो कर उन्हें तपेदिक भी हुआ था पश्चिमी सभ्यता में रहते हुए भी  वह अपनी संस्कृति से जुड़ी रही।  उन्होंने 1885 में चिकित्सा की डिग्री हासिल की। उनके शोध का विषय 'हिंदुओं के बीच प्रसूति' था।


सन 1886 के अंत में, भारत लौटने पर आनंदीबाई का भव्य स्वागत हुआ। कोल्हापुर की रियासत ने उन्हें स्थानीय अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल की चिकित्सा प्रभारी के रूप में नियुक्त किया। 1888 मेंअमरीका में नारी- विमर्श की चर्चा में उनका नाम उधृत किया गया। 

लखनऊ के एक गैर-सरकारी संगठन के तहत भारत में चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए उनके शुरुआती योगदान के सम्मान में आनंदीबाई जोशी चिकित्सा पुरस्कार दिया जाता है और महाराष्ट्र सरकार द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम करने वाली युवा महिलाओं के लिए उनके नाम पर एक शिक्षावृत्ति दी जाती है।

दो वर्षों के अंतराल में वह फिर से टीबी की शिकार हुई और26 फ़रवरी, 1887 को मात्र बाइस साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके जीवन पर कैरोलिन विल्स ने साल 1888 में बायोग्राफी भी लिखी। इस बायोग्राफी को दूरदर्शन चैनल परआनंदी गोपालनाम से हिंदी टीवी सीरियल का प्रसारण किया गया



गूगल ने 31 मार्च, 2018 को भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी की 153वीं जयंती पर उन्हें एक ख़ास डूडल बनाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शुक्र ग्रह जिसे "भोर का तारा" भी कहा जाता है, इस पर बहुत बड़े-बड़े गड्ढे हैं। इस ग्रह के तीन गड्ढों के नाम भारत की तीन प्रसिद्ध महिलाओं के नाम पर रखे गये हैं वह असंख्य महिलाओं की प्रेरणास्रोत्र बनी जो आज पूरी लगन से चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है।

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