अधूरी उड़ान
सकारात्मकता सोच के साथ , सपनों को समेट कर , बैठे थे वो विमान में , 10 घंटे बाद जिनकी हो जानी थी मंज़िल तय ....... उन्हें नहीं था एहसास , इस उड़ान से सपनों के पंख बादलों में खो जाएँगे, क्या कभी सोचा था उन्होंने , कि यह उड़ान , एक अंतिम सफ़र बन जाएगा, मंज़िल नहीं , राख बन जाएगी , वो जो थे ज़िंदगी के मुसाफ़िर , अब बस खबरों की सुर्खियाँ बनकर रह गए ... खिड़की से झांकती वह माँ , गले मिलता वह बेटा , अपने पिता के सपना को लेकर जाती वह बिटिया , अपने हमसफर से मिलने की तमन्ना लिये जाती नवविवाहिता , किसी के हाथ में था खिलौना , तो किसी के हाथ में आटे के लड्डू , किसी के हाथों में लगी मेहंदी , किसी का वो आखिरी खत जो अब बेमंज़िल रह गया , ...