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अधूरी उड़ान

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                                                                     सकारात्मकता सोच के साथ , सपनों को समेट कर , बैठे थे वो विमान में , 10 घंटे बाद जिनकी हो जानी थी मंज़िल तय ....... उन्हें नहीं था एहसास , इस उड़ान से सपनों के पंख बादलों में खो जाएँगे, क्या कभी सोचा था उन्होंने , कि यह उड़ान , एक अंतिम सफ़र बन जाएगा, मंज़िल नहीं , राख बन जाएगी , वो जो थे ज़िंदगी के मुसाफ़िर , अब बस खबरों की सुर्खियाँ बनकर रह गए ... खिड़की से झांकती वह माँ , गले मिलता वह बेटा , अपने पिता के सपना को लेकर जाती वह बिटिया , अपने हमसफर से मिलने की तमन्ना लिये जाती   नवविवाहिता , किसी के हाथ में था खिलौना , तो किसी के हाथ में आटे के लड्डू , किसी के हाथों में लगी मेहंदी , किसी का वो आखिरी खत जो अब बेमंज़िल रह गया , ...

महाकुंभ मेला , जाने इसका इतिहास और महत्व

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1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में कुंभ मेले के दौरान अक्सर दो भाइयों या माता-पिता के बिछड़ने और पुनर्मिलन की कहानियाँ दिखाई जाती थीं, जिससे दर्शकों में कुंभ का अर्थ 'खोना' बन गया। शायद   यही   कारण   है   कि   बहुत   से   लोग   कुंभ   और   कुंभ   मेला   के   बारे   में   सही   जानकारी   नहीं   रखते।   तो   चलिए ,  हम   कुंभ   के   अर्थ   और   इसके   इतिहास   के   बारे   में   विस्तार   से   जानें। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार , कुंभ मेला हरिद्वार , उज्जैन , प्रयागराज और नासिक में आयोजित होता है। कथानक के अनुसार , जब देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया , तो कई दिव्य वस्तुएं प्रकट हुईं , जिनमें से एक था ' अमृत कलश ', और यही अमृत इन चार स्थानों पर गिरा था , जिसके बाद कुंभ मेला की परंपरा शुरू हुई। पौराणिक कथा : पौराणिक कथा के अनुसार , समुद्र मंथन के दौरान भगवान ध...