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Showing posts from April, 2023

ईद-उल-फितर (मीठी ईद)

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On Saturday, April 22, the world was celebrating the festival of Eid with family and friends. The Pioneers' Vision was finding facts and the reasons for how, when, and why people celebrate Eid. They discussed it with their Muslim friends, gathered all the information, and shared it with us. Thanks to students of year 6 and  5 for sharing the  lovely movement with us. ईद-उल-फितर   कब मनाई जाती है ?   ईद मुस्लिम धर्म के लोगों का सबसे प्रमुख पर्व है , लेकिन सभी धर्म के लोग इस त्योहार को खुशी से मनाते हैं । ईद के दिन अल्लाह से अपने लिए और अपने करीबी लोगों के लिए दुआ भी करते हैं। इस्लामिक   कैलेंडर   के   मुताबिक ‘ ईद-उल-फितर ’   रमज़ान महीने (नवें) के अंतिम दिन चांद को देखकर शव्वाल महीने के पहले दिन मनाई जाती है। रमजान का महीना इबादत का महीना होता है। रमज़ान के महीने में लोग 30 दिनों तक रोजें रखते हैं। लोग   गरीब   और   जरूरतमंदों   के   लिए   कुछ   रकम   दान   देते   हैं , इसके पीछे मान्यता है कि इस पाक महीने में दान देने से उसका दोगुना फल मिलता है । ईद-उल-अज़हा ’ कब मनाई जाती

लट्ठमार होली

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राधा रानी के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली का पर्व अपने अनोखे तरीके से मनाने के लिए विश्वप्रसिद्ध है। यह उत्सव फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। होली का पर्व बसंत ऋतु का स्वागत करता है।  होली का पर्व विश्व के हर कोने में विभिन्न तरीको से मनाया जाता है, जैसे स्पेन में लाखों टन टमाटर एक-दूसरे पर फेंकतें है। तेरह से पंद्रह अप्रैल को थाईलैंड में 'सौंगक्रान' का पर्व मनाया जाता है जिसे वह नव वर्ष  का प्रतीक माना जाता है ।  इस पर्व में अपने बड़ो के हाथों में जल डालकर आशीर्वाद लिया जाता है। अफ्रीका के कुछ देशों में सोलह मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है, लोगों का विश्वास है कि सूर्य को रंग-बिरंगे रंग दिखने पर उसकी सतरंगी किरणों की आयु बढ़ती है। पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाता है।  कान्हा की नगरी में होली का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। मथुरा और ब्रज की होली दुनियाभर में अपनी अनोखी छटा, प्रेम और परंपराओं के लिए जानी जाती है। यहां

भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह का इतिहास

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  देश का राष्ट्रीय चिन्ह ही उसकी संस्कृति और उसके अस्तित्व को दर्शाता है। वैसे तो हम सब अपने राष्ट्रीय चिन्ह से भालि - भाँती परिचित है लेकिन क्या   राष्ट्रीय चिन्ह ( अशोक स्तंभ ) के पीछे का इतिहास हमें पता है ?   सन् 2022 जुलाई में नवनिर्मित संसद   की छत पर 20 फीट अशोक स्तंभ का अनावरण   किया गया । इसके बाद हमारे मन में अशोक स्तंभ को लेकर   कई सवाल उठने लगे। संवैधानिक रूप से भारत सरकार ने 26 जनवरी , 1950 को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अशोक स्तंभ को अपनाया था क्योंकि इसे शासन , संस्कृति और शांति का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया है।   सम्राट अशोक बहुत क्रूर और निर्दयी शासक थे। यह भी बताया जाता है कि वर्तमान के पूर्व असम से ईरान तक उनका राज्य फैला हुआ था। सच है कि अंहकार और शोहरात इंसान में लालच बढ़ा देता है , इतना बड़ा साम्राज्य होने के बावजूद भी उनकी नजर कलिंग पर थी। वह उसे भी अपने साम्राज्य में मिलना चाहते थे। पर कलिंग युद्ध मे हुए नरसंहार से