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Showing posts from January, 2024

नन्हा बीज बन पेड़, बना सबका दुलारा

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ज़ारा लाई खुरपी , मिट्टी खोद कर बोया उसने उनको ॥   आराध्या लेकर आई पानी , पिलाया पानी अपने नन्हें हाथों से बीज को ॥ सकीना पड़ गई सोच में , पानी ने बुझा दी प्यास , मिट्टी से मिल गए खनिज उसे , क्या सूरज चाचा देंगे गरमाहट उनको ?   चलो , न्योता दे सूरज चाचा को , रक्षित बोला , बीज होते है निराले - दुलारे अपनी ' माँ ' के , माँ ,’ धरा ’ की कोख से पाकर ताप , मिलेंगे प्राण बीज को ॥ ॥   दोस्तों ! जब मिलेगी साँस इस अजीव   को , आयेंगे उनमें अंकुर , होगा आवागमन नन्ही और कोमल पत्तियों का , सच कहा अरीसा ने , बरसाएंगे हम पर स्नेह उनका ॥ क्या तुम्हें मालूम है , नन्हे बीज में होती इतनी ताकत , बोल उठी मानीका नहीं डरता वह बंजर भूमि से , एक बूँद भी कर देती अंकुरित बीज को ॥ डालियों , तनों , कलियों , फूलों और फलों ने किया स्वागत प्रकृति का , नन्हा बीज बन पेड़, बना सबका दुलारा ॥

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….

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  पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा…. अभिनंदन करती अवथ नगरी, कौसलेय का, मान रखा कौशल्या सुत राम ने, प्राण जाए पर वचन ना जाए, माँ कैकयी की ममता की रखी लाज, राजीवलोचन के नयनों में ना दिखे अश्रु, रखी लाज रघुकुल की रीति की.... पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा…. अभिनंदन कर रहा सरयू घाट, आज अपने लाल का, घाट को मिल गया उसका बालवीर शूर, लहरें भी बोल उठी, शंखनाद की गूँज और पुष्पवर्ष से सज गया सरयू घाट, जय- जयकार हो रही शाश्वत की .... पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा…. अभिनंदन कर रही अवध नगरी, जनकनन्दिनी के संगी का, छद्मवेंश साधु का  धर के रावण. ले गया सीता क़ो लंका हर के, साथ दिया जटायु, विभीषण, सुग्रीवं ,लक्ष्मण और बजरंगी ने, मर्यादा पुस्षोत्तम ने रखी  लाज अपने प्रियतम की .... पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा.... अभिनंदन कर रही अवध नगरी , शबरी का, बेरो मे झलकता था सद्भाव आस्था और  प्रेम, नययों में थे अश्रु, पांच शतक के बाद त्रिलोकरक्षक लौट रहे अपने अवध नगरी, कोई शबरी ना होगी  निराश , द्वार प्रज्वलित होगे अहिल्या दीप से हर शबरी के, पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा…. अभिनंदन कर रही अवध नगरी ,  मर्यादा मय र

देव दीपावली

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  दीपावली  और देव दीपावली में क्या है अंतर ,  दीपावली  के 15 दिनों बाद फिर क्यों होता है रोशनी का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार देव दीपावली   कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन   मनाई जाती है । देव दिवाली का   पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार , भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल   काशी ( वाराणसी ) पहुंचे थे , जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं , इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।   पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था , जिसके बाद तारकासुर के तीनों पुत्र तारकाक्ष , कमलाक्ष और विद्युन्माली अपने पिता के वध का बदला लेने का प्रण लेते हैं। इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना गया। पिता के वध का बदला लेने के लिए तीनों ब्रह्मा देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और वरदान में अमरत्व मांगा। ब्रह्म देव ने अमरता का वरदान देने से इंकार कर दिया और उनसे कुछ और माँगने क