नन्हा बीज बन पेड़, बना सबका दुलारा
मिट्टी खोद कर बोया उसने उनको ॥
आराध्या लेकर आई पानी,
पिलाया पानी अपने नन्हें हाथों से बीज को ॥
सकीना पड़ गई सोच में, पानी ने बुझा दी प्यास,
मिट्टी से मिल गए खनिज उसे, क्या सूरज चाचा देंगे गरमाहट उनको ?
चलो, न्योता दे सूरज चाचा को,
रक्षित बोला, बीज होते है निराले-दुलारे अपनी 'माँ 'के,
माँ,’धरा’ की कोख से पाकर ताप, मिलेंगे प्राण बीज को ॥ ॥
दोस्तों! जब मिलेगी साँस इस अजीव को,
आयेंगे उनमें अंकुर, होगा आवागमन नन्ही और कोमल पत्तियों का,
सच कहा अरीसा ने, बरसाएंगे हम पर स्नेह उनका ॥
क्या तुम्हें मालूम है, नन्हे बीज में होती इतनी ताकत,
बोल उठी मानीका नहीं डरता वह बंजर भूमि से,
एक बूँद भी कर देती अंकुरित बीज को ॥
डालियों,तनों, कलियों, फूलों और फलों ने किया स्वागत प्रकृति का,
नन्हा बीज बन पेड़, बना सबका दुलारा ॥
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