देव दीपावली

 

दीपावली और देव दीपावली में क्या है अंतरदीपावली के 15 दिनों बाद फिर क्यों होता है रोशनी का पर्व



हिन्दू पंचांग के अनुसार देव दीपावली कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है देव दिवाली का  पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल  काशी (वाराणसी)पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।

 पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था, जिसके बाद तारकासुर के तीनों पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली अपने पिता के वध का बदला लेने का प्रण लेते हैं। इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना गया। पिता के वध का बदला लेने के लिए तीनों ब्रह्मा देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और वरदान में अमरत्व मांगा। ब्रह्म देव ने अमरता का वरदान देने से इंकार कर दिया और उनसे कुछ और माँगने को आग्रह किया था। जिसके बाद त्रिपुरासुर ब्रह्म देव से अपने लिए तीन पुरियाँ ( नगरी) माँगी और जब वे तीनों पुरियाँ अभिजित नक्षत्र  में एक पंक्ति में हो और अत्यंत शांत अवस्था में असंभव रथ और असंभव बाण से मारना चाहे तब ही उनकी मृत्यु हो।

वरदान के बाद त्रिपुरासुर बलशाली होकर हर कहीं आतंक मचाने लगते हैं, तीनों जहां भी जाते लोगों और ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने लगते हैं। देवता भी उनके आतंक से परेशान होकर भगवान शिव के पास जाते हैं और अपनी व्यथा सुनाते हैं, जिसके बाद भगवान शिव त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लेते हैं।

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध के लिए पृथ्वी को रथ और सूर्य और चंद्रमा को पहिए बनाया । सृष्टि सारथी बने, भगवान विष्णु बाण बने, वासुकी धनुष की डोर बने और मेरु पर्वत धनुष बने। फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ाते हुए अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक पंक्ति में आते ही त्रिपुरासुर और उनकी की तीनों पुरियां जलकर भस्म कर दी।

इस दिन पर गंगा घाटों पर बड़ी संख्या में तीर्थयात्री देव दिवाली मनाने के लिए इस स्थान पर आते हैं और एक दीया जलाकर गंगा नदी में छोड़ देते हैं।


कहते हैं कि इस दिन सिखों के पहले गुरु गुरु नानक साहब का जन्म हुआ था गुरु नानक देव की जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है इस दिन सिख धर्म के लोग लोग गुरुद्वारे जाकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं, गुरुद्वारों में होने वाले भजन, कीर्तनों में शामिल होते हैं

थाईलैंड  और निकटवर्ती दक्षिण-पश्चिमी की थाई संस्कृतियों के द्वारा  'लोई क्रथोंग पर्व' थाई चंद्र कैलेंडर के 12 वें महीने की पूर्णिमा की शाम को मनाया जाता है। पर्व के नाम का अनुवाद "एक टोकरी तैरने के लिए" के रूप में किया जा सकता है, जो की क्रथोंग बनाने की परंपरा से आती है। कई थाई क्रथोंग का उपयोग गंगा नदी को धन्यवाद देने के लिए करते हैं।

यही त्योहार म्यांमार में " ताज़ुंगदिंग त्यौहार ", श्रीलंका में " इल फुल मून पोया " और कंबोडिया में " बॉन ओम टौक " के रूप में मनाया जाता है।

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