पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….

 



पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….

अभिनंदन करती अवथ नगरी, कौसलेय का,
मान रखा कौशल्या सुत राम ने, प्राण जाए पर वचन ना जाए,
माँ कैकयी की ममता की रखी लाज,
राजीवलोचन के नयनों में ना दिखे अश्रु, रखी लाज रघुकुल की रीति की....

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….
अभिनंदन कर रहा सरयू घाट, आज अपने लाल का,
घाट को मिल गया उसका बालवीर शूर, लहरें भी बोल उठी,
शंखनाद की गूँज और पुष्पवर्ष से सज गया सरयू घाट, जय- जयकार हो रही शाश्वत की....

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….
अभिनंदन कर रही अवध नगरी, जनकनन्दिनी के संगी का,
छद्मवेंश साधु का  धर के रावण. ले गया सीता क़ो लंका हर के,
साथ दिया जटायु, विभीषण, सुग्रीवं ,लक्ष्मण और बजरंगी ने,
मर्यादा पुस्षोत्तम ने रखी  लाज अपने प्रियतम की....

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा....
अभिनंदन कर रही अवध नगरी , शबरी का,
बेरो मे झलकता था सद्भाव आस्था और  प्रेम,
नययों में थे अश्रु, पांच शतक के बाद त्रिलोकरक्षक लौट रहे अपने अवध नगरी,
कोई शबरी ना होगी  निराश , द्वार प्रज्वलित होगे अहिल्या दीप से हर शबरी के,

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….
अभिनंदन कर रही अवध नगरी ,  मर्यादा मय राम का,
पापों का किया अंत सदैव, प्राण प्रतिष्ठा है शुरुवात त्रेता युग  की,
अंत होगा पाप- विलय, नफरत और द्वेष भाव का.
द्विश शक्ति से गूंज़े फिर ज़यकार श्री राम की वसुंधरा पर,
गूंज़े फिर ज़यकार सत्य सनातन धर्म क़ी.....

पधारो मेरे राम बन्ना, पधारो सा….   
अभिनंदन कर  रही अवध नगरी, सदियों से था चारों ओर घनघोर अँधेरा ,
आओ मिलकर दीप जलाएं, अवध ( वैकुंठ) में राम आए, श्री राम आए मैया सीता और लक्ष्मण संग ,
कण-कण में बसे राम का,
रोम-रोम मे बसे राम का,





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