मदर टेरेसा


मदर टेरेसा
(एक फरिश्ता)


भूमिका:

माँ के बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नही कर सकते हैं। माँ प्रेम व करुणा का प्रतीक है। माँ कष्ट सहकर भी संतान को अच्छी से अच्छी सुख-सुविधाएं देने की कोशिश करती है , ऐसी जननी मदर टेरेसा जिन्होंने अपना जीवन दुनिया भर के ग़रीबों और निराश्रितों की सेवा में समर्पित कर दिया,उस जननी की साल 2020 में हम 110 वीं जयंती मनाएंगे ।

जन्म :

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ था। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता निकोला बोयाजू का निधन हो गया, जिसके बाद इनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी इनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी।

प्रारंभिक जीवन :

मदर टेरेसा एक सुंदर, परिश्रमी एवं अध्ध्यनशील लडकी थीं। उन्हें पढना, गीत गाना बहुत पसंद था। बहुत कम उम्र में उन्हें यह अनुभव हो गया था कि वे अपना सारा जीवन मानव सेवा में बिता देंगी और 12 साल की उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला किया 18 साल की उम्र में कलकत्ता में आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में शामिल होने का फैसला लिया।

भारत आगमन: 

1928 में, मदर टेरेसा जब 18 साल की थीं, तब वह आयरलैंड से ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं।फिर पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं। 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और बाद में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की जिसे 7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। जो भारत में मिशन के साथ नन थीं। छह हफ्ते बाद वह कलकत्ता में ऑर्डर स्कूल में एक शिक्षक के रूप में काम करने के लिए भारत आईं। मिशनरीज संस्था ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले। टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले। ‘निर्मल हृदय’ आश्रम का काम बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करना था, वहीं 'निर्मला शिशु भवन’ आश्रम की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए हुई, जहां वे पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं।


सम्मान और पुरस्कार
:

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए.......
पहला पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार। (1971)
केनेडी पुरस्कार (1971)
नेहरू पुरस्कार - "अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए" (1972)
अल्बर्ट श्वित्ज़र अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार (1975)
नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
स्टेट्स प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम (1985)
कांग्रेसनल गोल्ड मेडल (1994)
यू थान शांति पुरस्कार 1994
संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता -16 नवंबर, 1996



मृत्यु:

1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके बाद साल 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा आया धीरे- धीरे उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया और 5 सितंबर 1997 गरीबों की मसीहा सबको छोड़ गई ।

अनमोल वचन (मदर टेरेसा) 

दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज की कोई सीमा नही....

यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो सिर्फ एक को ही भोजन करवाएं....

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