पर्व भारत का, धुनें अंग्रेजी हुकमत की

  



साल 2022 से गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में कुछ बदलाव लाए गए हैं। सामान्यतःगणतंत्र दिवस का कार्यक्रम 24 जनवरी से राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले बच्चों के साथ शुरू होता है। लेकिन इस बार यह 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती से शुरू हुआ।। 25 जनवरी की शाम राष्ट्रपति देश के नाम संबोधन देते हैं। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस का मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।27 जनवरी को प्रधानमंत्री परेड में शामिल हुए एनसीसी कैडेट के साथ मुलाकात करते हैं। 

 

29 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रायसीना हिल्स विजय चौक) पर हर वर्ष 29 जनवरी को गणतंत्र दिवस के समापन का कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है,जिसे ‘बीटिंग द रिट्रीट’ कहा जाता है।इसी के साथ गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम खत्म होता है। इस बार दूसरा अहम बदलाव 'बीटिंग द रिट्रीट समारोह’ में लाया गया है। 

 

क्या है 'बीटिंग द रिट्रीट समारोह’?

 

'बीटिंग द रिट्रीट' शताब्दियों पुरानी सैन्य परंपरा का प्रतीक है जब सेनाएं युद्ध समाप्त करके लौटती थी और युद्ध के मैदान से वापस आने के बाद अपने अस्त्र शस्त्र उतार कर रखती थीं और सूर्यास्त के समय अपने शिविर में लौट आती थीं। इस समय झण्डे नीचे उतार दिए जाते थे। यह समारोह वीरों की शहादत की याद दिलाता है।

 

'बीटिंग द रिट्रीट' कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्रपति होते हैं। राष्ट्रपति अपने अंग रक्षकों के साथ समारोह स्थल पर पहुंचते हैं। जब राष्ट्रपति का आगमन होता है तो उनके अंगरक्षक राष्ट्रीय सलामी देने के लिए एकत्र होते हैं, जिसके बाद भारतीय राष्ट्रगान, जन गण मन बजाया जाता है और इसके बाद सामूहिक बैंड वादन सहित भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। 



इस समारोह में नौसेना, वायु सेना और केंद्रीय सशस्‍त्र पुलिस बलों के पारम्‍परिक बैंड अलग अलग धुन बजाते हैं और देश के लिए शहीद हुए जवानों को याद करते हैं। 1950 से 2021 तक ड्रमर्स द्वारा स्कॉटलैंड के भजन  ‘अबाइड विद मी’ की धुन बजाई जाती थी ।  ‘अबाइड विद मी’ जिसे महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कहा जाता है  । इस बार 'ऐ मेरे वतन के लोगों 'ज़रा आंख में भर लो पानी' जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़र्बानी' की धुन बजाई जाएगी ।यह मशहूर देशभक्ति गीत कवि प्रदीप ने लिखा था । 



 

क्या है ‘अबाइड विद मी’ (Abide With Me)?

 

‘अबाइड विद मी’ (Abide With Me) ईसाई धर्म का(Hymn) लोकप्रिय भजन है।  ‘अबाइड विद मी’  जिसका हिंदी में अर्थ है 'मेरे साथ रहो।' इस भजन की  रचना स्कॉटलैंड के कवि और पादरी हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में की थी। सूत्रों के अनुसार, हेनरी फ्रांसिस लाइट ने यह भजन साल 1820 में लिखा था । उन्होंने जब यह

भजन  लिखा तब वह अपने एक दोस्त से मिलकर आए थे जो अपनी जीवन की अंतिम सांसे ले रहा था । इस भजन में कहा गया कि, 'ईश्वर जीवन के अंतिम सांसों में मेरे साथ रहो।' 1847 में हेनरी की मृत्यु के बाद इस भजन का प्रकाशन हुआ और 1861 में ब्रिटेन के महशूर संगीतकार विलियम हेनरी मॉक ने इस  पर धुन बनाई और धीरे -धीरे ईसाई बहुसंख्यक देशों में ‘अबाइड विद मी’ काफी लोकप्रिय हो गया।।

 

धीरे-धीरे यह धुन  दुखी पलों में बजने लगी , कहा जाता है कि टाइटैनिक के डूबने पर भी इसे बजाया गया था, प्रथम विश्व युद्ध में भी यह काफी बार बजाई गई जिससे यह काफी लोकप्रिय हो गई।  भारतीय सेना में ही नहीं, कई देशों की सेना में इसे शहीदों को याद करते हुए बजाया जाता है। 

 

पर क्यों भारतीय के राष्ट्रीय पर्व पर अंग्रेजी धुन बजाई जाती है? 

 

‘अबाइड विद मी’ को महात्मा गांधी के निजी पसंदीदा भजन में से एक कहा गया है,पर इस बार कोई पुख्ता सबूत नहीं है। कहा गया है कि महात्मा गांधी ने सबसे पहले यह धुन साबरमती आश्रम  में सुनी थी और उसके बाद से यह भजन वहाँ बजने लगा । यह भी कहा जाता है कि 'वैष्णव जन तो' और 'रघुपति राघव राजा राम' उनकी पसंदीदा धुनें थी, पर वे बीटिंग द रिट्रीट में सुनाई नहीं देती । ऐसा क्यों,‘ सिर्फ़ अबाइड विद मी’  को ही अहमयित क्यों दी गई ।यदि यह धुन महात्मा गाँधी की याद में बजाई जा रही है तो 'रघुपति राघव राजा राम' उनकी पसंदीदा धुन क्यों नहीं बजाई जाती।

 

एक कड़वा सच यह है कि महात्मा गाँधी ने कभी नहीं कहा कि स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय पर्व में यह धुन बजे।

क्या इसका सबसे कारण हमारी मानसिकता सोच है। क्यों भूल जाते हैं कि भारत समृद्ध संस्कृति और विरासत की भूमि है जहाँ उदारता, एकता,और धर्मनिर्पेक्षता दिखाई देती हैं।देश को आजाद हुए 75 साल हो गए पर अभी तक क्यों अंग्रेजी नीति को अपनाए हुए हैं? 

 

हमारे भारत के कवियों, लेखकों और संगीतकार ने ऐसी गीत और धुनें बनाई जो आपके दिलों को झंकोर देती है । 'बीटिंग द रिट्रीट समारोह’ जिसे भारत का गौरव कहा गया है, जिसमें वर्ष 2022 में  कई भारतीय धुनें शामिल की गई । आजादी के 75 साल बाद शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जाएगी। 

 

अतिथि देवो भव, प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मेहमान का बड़े भाव के साथ आदर सत्कार किया जाता है। हम 1950 से बीटिंग द रिट्रीट’ में विदेशी अतिथि को निमंत्रण देते आ रहे हैं,पर क्यों न इस परंपरा में भी बदलाव लाए । विदेशी अतिथि के स्थान पर उसे निमंत्रिंत करे जिसने देश के लिए निस्वार्थ सेवा की हो। बस एक ओर बदलाव क्यों ना इस परंपरा को भारतीय नाम  दे दिया। स्वाधीन भारत, स्वाधीन  सोच......


 


 

सुनीता महेन्द्रू

 

 


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