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Showing posts from May, 2023

रानी लक्ष्मीबाई

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रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्य क्रान्ति की   वीरांगना थीं। मात्र 29 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत का डटकर सामना किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं।   उनकी   वीरता की गाथाएँ इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखी गई है। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 18 नवम्बर 1828 को हुआ था।उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था । सब उन्हें   प्यार से मनु पुकारते थे। वह बचपन में बहुत चंचल और नटखट थी। मनु के पिता मोरोपंत तांबे एक दयालु व्यक्ति थे। वह पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहाँ कार्य करते थे। माता भागीरथी बाई बुद्धिमान , धार्मिक और सुसंस्कृत स्वभाव की थी । जब मनु चार वर्ष की थी उनकी माँ का देहांत हो गया था , घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले गये। बाजीराव   उन्हें प्यार से " छबीली " कहकर बुलाते थे।। मनु का बचपन उनके महल में

स्वामी विवेकानंद

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भारत के  महापुरुष स्वामी विवेकानंद( नरेंद्र) जिन्होनें रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना सन् 1897 में कोलकत्ता में की  थी। उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र से लोगों को परिचित कराया । विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया और देश में फैल रही जातिगत भेदभाव जैसी कुरीतियों  में सुधार लाए। ऐसे महापुरुष जिनकी विलक्षण स्मरण-शक्ति और बुद्धि की सभी प्रशंसा करते थे । उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को 'राष्ट्रीय युवा दिवस' मनाया जाता है।  आध्यात्मिक विचारों वाले नरेन्द्र ने, आठ साल की उम्र में  सन् 1871 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये। वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे। उनकी वेदों सहित अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी।  नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन

दीये का अभिमान

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श्री द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी द्वारा लिखित कविता  दीये का अभिमान एक काल्पनिक कविता है , जिसमें उन्होंनें घमंड करने के दुष्परिणाम को खूबसूरती से बयां किया है। इस कविता में उन्होंने बताया कि एक दीये को अपने ऊपर गुरुर था । उसका मानना था कि वह सूर्य और चाँद से अधिक शक्तिशाली है। सूरज सिर्फ दिन में चमकता है ,और चाँद घरों के अंदर का अंधेरा दूर नहीं कर सकता है। वह तो अपनी रोशनी से पूरे घर का अँधियारा  दूर  कर सकता है। उसके बिना तो सृष्टि  की  भी कोई पहचान नहीं है। अचानक ही सृष्टि ने रुख पलटा और हवा के तेज झौंके से उसकी जलती लौ बुझ गई चारों और सिर्फ धुआँ था। दीए जिसे समझा रहा था कमजोर वह तो कभी आँधी-तूफान के आगे नहीं झुके। इंसान को जीवन में अभिमान नहीं करना चाहिए । अभिमान इंसान को अपने आप पर गर्व करना सिखाता है पर कई बार वही अभिमान व्यक्ति को नीचे गिरा देता है । Year 7A/B (IPS, Bangkok)

फ्लोरेंस नाइटिंगेल

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आधुनिक परिचर्या की नींव रखने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को  इटली के फ्लोरेंस में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था।  आज पूरा विश्व उनका जन्मदिन 'अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस' के रूप में मनाता हैं। जिसकी शुरुवात वर्ष 1974 में की गई थी। फ्लोरेंस का बचपन  बीमारी और शारीरीक कमजोरी में गुजरा , पर  उन्होंने उसे अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दी । 16 वर्ष की उम्र में फ्लोरेंस ने निर्णय लिया कि वह अपना संपूर्ण जीवन लाचार लोगो की मदद में व्यतीत करेगी । उनका परिवार इस बात के खिलाफ था क्योंकि उन दिनों नर्सिंग को सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता था।  उनकी कर्मठता के आगे उनके परिवार को झुकना पड़ा। यहीं से नाइटिंगेल  के जीवन नई शुरुवात हुई। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, पर उन्होंने हर परिस्थितियों का डटकर मुकाबला किया और परिचर्या का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने लंदन में परिचर्या भवन की स्थापना की । सन् 1853 में जब क्राइमिया  (फ्रांस, तुर्की, ब्रिट्रेन, राशिया) के बीच युद्ध चल रहा था , तब अस्पताल  की दुर्दशा देख कर उनका दिल पसीज गया । अस्पताल में साफ- सफाई  नहीं थी,  चारों ओर चूहों का आंतक थ

र’ के विभिन्न रूप

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‘र’ एक व्यंजन वर्ण है।    हिंदी भाषा में कहीं पर ‘र’ का प्रयोग स्वर रहित होता है तो कहीं पर स्वर सहित। स्वर सहित — जिसमें ‘अ’ की ध्वनि हो (क, च, ट, त, प) स्वर रहित  — जिसमें ‘अ’ की ध्वनि न हो (क्, च्, ट्, त्, प्) उच्चारण की दृष्टि से यह लुंठित व्यंजन ध्वनि है।इस व्यंजन की विशेषता है कि यह मात्रा के रूप में दूसरे व्यंजन से जुड़ता है। स्वर रहित ‘र्’ को व्याकरण की भाषा में रेफ कहते हैं।जब यह दो वर्णों के बीच में आता है तो यह अपने आगे वाले वर्ण के ऊपर लग जाता है या चला जाता है। जैसे - सर्प, गर्दन । यदि आगे वाला वर्ण मात्रा युक्त होता है तो ‘र्’ उस आगे वाले वर्ण की मात्रा में जुड़ता है। जैसे ­-  जुर्माना, दुर्योधन स्वर वर्ण ‘ई’ के सिर पर लगा चिह्न और रेफ का चिह्न एक समान होता है, प्रयोग के समय ध्यान दें। जैसे मिठाई, यहां पर ई स्वर है । ‘र’ के ऊपर भी रेफ का प्रयोग हो सकता है, जैसे- खर्र-खर्र, अंतर्राष्ट्रीय इत्यादि।   कुछ ऐसे शब्द जिसमें ‘र’ के बाद का वर्ण भी स्वर रहित हो तो रेफ का प्रयोग उसके अगले वर्ण के सिर पर लगता है, जैसे-व् + अ + र् + ण् + य् + अ = वर्ण्य 'र' से पहले यदि स्

रेगिस्तान का जहाज---ऊंट

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प्राचीन काल से ही बालू के टीलों पर बिना खाए पीए अपने कूबड़ में संचित वसा या चर्बी से ऊर्जा लेकर ,चौड़े खुरो के बल पर कई दिनों तक लगातार चलने वाला स्तनपायी पशु मरुस्थल में  यातायात का श्रेष्ठ वाहन माना जाता है। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार ये अपने  कूबड़ में 36 किलो तक वसा जमा कर सकते हैं। हालाँकि 'रेगिस्तान का जहाज' बिना पानी पीये बहुत लम्बे समय तक रह सकते हैं, पर जब पानी पीते हैं तो एक बार में 150 लीटर पी जाते हैं। ऊंट रेगिस्तान की गर्म और शुष्क जलवायु के इतना उपयुक्त है कि    हम कल्पना भी नहीं कर सकते    कि वह पहले किसी भिन्न जलवायु में पाया जाता था। जीवाश्म वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग तीन सौ लाख वर्ष पूर्व ऊंट उत्तरी अमेरिका की बर्फीली घाटियों में विचरण करता था। उनका मानना  है कि अपने चौड़े खुरो के कारण बर्फ पर चलने में आसानी होती थी। कहा जाता है कि उत्तरी अमेरिका में रहने वाला ऊंट वर्तमान समय के रेगिस्तान में रहने वाले उंट से 30 प्रतिशत बड़ा और वजन में भारी रहा होगा। आंकड़े यह भी बताते हैं  कि दुनिया में पाए जाने वाले 94% ड्रोमेडरी ऊंट अर्थात्  एक कूबड़ वाले ऊंट उत्तरी अफ्र