दीये का अभिमान
श्री द्वारका प्रसाद माहेश्वरी जी द्वारा लिखित
कविता
दीये
का अभिमान एक काल्पनिक कविता है , जिसमें उन्होंनें घमंड करने के दुष्परिणाम को खूबसूरती
से बयां किया है।
इस कविता में उन्होंने बताया कि एक दीये को अपने ऊपर गुरुर था । उसका मानना था कि वह सूर्य और चाँद से अधिक शक्तिशाली है। सूरज सिर्फ दिन में चमकता है ,और चाँद घरों के अंदर का अंधेरा दूर नहीं कर सकता है। वह तो अपनी रोशनी से पूरे घर का अँधियारा दूर कर सकता है। उसके बिना तो सृष्टि की भी कोई पहचान नहीं है।
अचानक ही सृष्टि ने रुख पलटा और हवा के तेज झौंके से उसकी जलती लौ बुझ गई
चारों और सिर्फ धुआँ था।
दीए जिसे समझा रहा था कमजोर वह तो कभी
आँधी-तूफान के आगे नहीं झुके। इंसान को जीवन में अभिमान नहीं
करना चाहिए । अभिमान इंसान को अपने आप पर गर्व करना सिखाता है पर कई बार वही
अभिमान व्यक्ति को नीचे गिरा देता है ।
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