रेगिस्तान का जहाज---ऊंट

प्राचीन काल से ही बालू के टीलों पर बिना खाए पीए अपने कूबड़ में संचित वसा या चर्बी से ऊर्जा लेकर ,चौड़े खुरो के बल पर कई दिनों तक लगातार चलने वाला स्तनपायी पशु मरुस्थल में  यातायात का श्रेष्ठ वाहन माना जाता है। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार ये अपने  कूबड़ में 36 किलो तक वसा जमा कर सकते हैं। हालाँकि 'रेगिस्तान का जहाज' बिना पानी पीये बहुत लम्बे समय तक रह सकते हैं, पर जब पानी पीते हैं तो एक बार में 150 लीटर पी जाते हैं।

ऊंट रेगिस्तान की गर्म और शुष्क जलवायु के इतना उपयुक्त है कि  हम कल्पना भी नहीं कर सकते   कि वह पहले किसी भिन्न जलवायु में पाया जाता था। जीवाश्म वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग तीन सौ लाख वर्ष पूर्व ऊंट उत्तरी अमेरिका की बर्फीली घाटियों में विचरण करता था। उनका मानना  है कि अपने चौड़े खुरो के कारण बर्फ पर चलने में आसानी होती थी। कहा जाता है कि उत्तरी अमेरिका में रहने वाला ऊंट वर्तमान समय के रेगिस्तान में रहने वाले उंट से 30 प्रतिशत बड़ा और वजन में भारी रहा होगा।

आंकड़े यह भी बताते हैं कि दुनिया में पाए जाने वाले 94% ड्रोमेडरी ऊंट अर्थात्  एक कूबड़ वाले ऊंट उत्तरी अफ्रीका, अरब और मध्य पूर्व में पाए जाते हैं और लगभग 6% बैक्ट्रियन ऊंट दो कूबड़ वाले जो  कि मध्य एशिया, विशेष रूप से मंगोलिया और चीन में पाए जाते हैं ।

ऊंटों की वह शाखा जो मध्यपूर्व एशिया, ईरान और अरब देशों में बस गई थी, उनको गाय और घोड़े की तरह घरेलू पशु के रूप में पाला जाने लगा और दूसरी दक्षिण अमेरिका में जा बसी जहां वे अब लामा और अल्पाका के रूप में पाए जाते हैं। 

ऊंट शाकाहारी होते हैं। उनका जीवन काल लगभग 40-50 वर्ष होता है ।एक वयस्क ऊंट लगभग सात फुट ऊंचा और 650 किलो वजन का होता है। वह अपनी पीठ पर 450 किलो तक का बोझ दो सकता है। ऊंटों की देखने और सुनने की शक्ति बहुत तेज होती है और इनकी आंखों के ऊपर 3 परतें और कानों में ढेर सारे बाल होते इन्हें रेगिस्तान की धूल से बचाती हैं । ऊंट के पैरों के पंजे गद्देदार होते हैं, जो उसे रेत में धंसने नहीं देते । इनके शरीर का तापमान दिन और रात दोनों में बदलता रहता है, दिन के दौरान यह 41 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि रात में यह 34 डिग्री सेल्सियस होता है । ये हर रात लगभग 6 घंटे सोते हैं. ऊंट हमेशा लेटकर सोते हैं, लेकिन वे खड़े होकर भी सो सकते हैं ।

 ऊंटनी प्रति दो तीन वर्षों में तेरह महीनो तक गर्भ में रखकर एक बछड़े को जन्म देती है। जन्म के समय बछड़े के चर्म पर रोये रहते हैं, उसकी आंखे खुली होती है और वजन 50 किलो के करीब होता है। बछड़े को ऊंटनी अपने दूध से पालती है। पूर्ण वयस्क होकर झुण्ड में शामिल होने तक वह अपनी माँ के साथ ही रहता है। लगभग दो वर्ष का होने पर जब वह माँ के दूध की जगह वनस्पति और कांटेदार झाड़ियां आदि खाने लगता है, उसकी पीठ का कूबड़ विकसित होता है। 

ऊंटनी के दूध में गाय के दूध की अपेक्षा तीन गुणा अधिक विटामिन सी और कम वसा होने के कारण वह अधिक पौष्टिक होता है। इसलिए अरब देशों में लोग उंट का दूध पीना पसंद करते हैं।ऊंट एक शांत प्रजाति का जानवर है शायद यही वजह है की अरब संस्कृतियों में ऊंट को धैर्य, सहनशीलता और धीरज का प्रतीक माना गया है। 


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